बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर -
बालकों के संवेगों की विशेषताएँ
( Characteristics of Children's Emotions)
बालकों और प्रौढ़ों के संवेग समान नहीं होते हैं। प्रौढ़ों में संवेग विकसित ( Developed) अवस्था में होते हैं तथा बालकों में संवेग विकासशील (Developing) अवस्था में होते हैं। दोनों में संवेगों की संख्या की दृष्टि से भी अन्तर पाया जाता है। प्रौढ़ों में अधिक संख्या में संवेग पाये जाते हैं और बालकों में कम संख्या में पाये जाते हैं। प्रौढ़ों और बालकों की संवेगात्मक अभिव्यक्ति में भी अन्तर पाये जाते हैं। बालकों के संवेगों की विशेषताओं के वर्णन के अन्तर्गत भी प्रौढ़ों और बालकों के संवेगों में अन्तर का वर्णन है।
(1) बालकों के संवेग क्षणिक (Transitory) होते हैं। बालक में कोई भी संवेग क्यों न उत्पन्न हुआ हो, वह अधिक देर नहीं रहता है। बहुधा देखा गया है कि हँसते हुए बालक के आँसू थोड़ी ही देर में निकलने लगते हैं। क्रोधित बालक तुरन्त मुस्कराने लगता है। बालकों की अपेक्षा प्रौढ़ों में यदि कोई संवेग एक बार उत्पन्न होता है तो वह अपेक्षाकृत अधिक समय तक व्यक्ति में उपस्थित रहता है। बालकों के संवेगों के क्षणिक होने के कई कारण होते हैं; जैसे—अनुभव और बौद्धिक योग्यताओं की कमी के कारण बालक संवेगात्मक परिस्थिति और संवेगात्मक उत्तेजना को भली-भाँति समझ नहीं पाते हैं। दूसरे बालकों का स्मृति - विस्तार और ध्यान का विस्तार कम होता है, इसलिए भी उनमें उपस्थित संवेग शीघ्र परिवर्तित हो जाते हैं।
(2) बालकों में संवेग प्रौढ़ व्यक्तियों की अपेक्षा जल्दी-जल्दी उत्पन्न होते हैं अर्थात् संवेग की आवृत्ति (Frequency) अधिक होती है। प्रत्येक दिन बालक जितनी अधिक संख्या में संवेग का अनुभव करते हैं उतनी अधिक संख्या में प्रौढ़ व्यक्ति नहीं करते हैं। विभिन्न संवेग ( भय, क्रोध, प्रेम, घृणा, ईर्ष्या, हर्ष आदि) बालक में थोड़ी-थोड़ी देर बाद उत्पन्न होते रहते हैं परन्तु प्रौढ़ व्यक्तियों में इतनी आवृत्ति नहीं होती है।
(3) बालकों के संवेगों की तीव्रता (Intensity) अधिक होती है। सम्भवतः उनका संवेगों पर नियन्त्रण अधिक न हो सकने के कारण ऐसा होता है। उदाहरण के लिए, क्रोध में बालक हाथ-पैर पटकने के साथ-साथ मचल जाता है; जमीन पर बुरी तरह लोटने लग जाता है, आदि। प्रौढ़ व्यक्तियों के संवेगों की तीव्रता इतनी अधिक नहीं होती है क्योंकि इनका इनके संवेगों पर अधिक अनुभव और अधिक मानसिक योग्यताओं के कारण नियन्त्रण अधिक होता है। बालक की आयु जैसे-जैसे बढ़ती जाती है वैसे-वैसे वह समझने लग जाता है कि उसके संवेगों की यह तीव्रता प्रशंसनीय नहीं है, लोग इसका मजाक उड़ाते हैं। अतः उसकी इस प्रकार की समझ बढ़ने के साथ-साथ उसके संवेगों की तीव्रता कम होती जाती है।
(4) बालकों की संवेगात्मक अनुक्रियाओं से वैयक्तिकता परावर्तित ( Responses Reflect Individuality) नवजात शिशुओं की संवेगात्मक अनुक्रियाएँ समान होती है। उनमें अधिक अन्तर नहीं पाया जाता है। परन्तु शिशुओं की आयु बढ़ने के साथ-साथ उनके अनुभव और मानसिक योग्यताओं में वृद्धि होता है। इस वृद्धि के कारण बालकों की संवेगात्मक अनुक्रियाओं में वैयक्तिकता आती जाती है। वैयक्तिकता के कारण ही एक बालक डर के कारण भागना प्रारम्भ कर देता है, दूसरा स्तब्ध खड़ा रह जाता है और तीसरा अपनी माँ के आँचल में छिप जाता है।
(5) बालकों के संवेगों की शक्ति परिवर्तित होती रहती है (Emotions Change in Strength)। अध्ययनों में यह देखा गया है कि बालक की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसमें कुछ संवगों की शक्ति घट जाती है और कुछ संवेगों की शक्ति बढ़ जाती है। कुछ संवेग जो अधिक शक्तिशाली होते हैं उनकी शक्ति कम हो जाती है और जिन संवेगों की शक्ति कम होती है या जो क्षीण होते हैं, उनकी शक्ति आयु बढ़ने के साथ-साथ कुछ बढ़ जाती है। प्रौढ़ व्यक्तियों के संवेगों की शक्ति में काफी स्थिरता आ जाती है।
(6) बालकों के संवेगों की आभिव्यक्ति का प्रकाशन शीघ्र ही उनके मुखमण्डल से व्यक्त होने लगता है। बहुधा यह देखा गया है कि बालक सामाजिक वातावरण पर बिना ध्यान दिए अक्सर बहुत जोर से क्रोध व्यक्त करते हैं, हर्ष या घृणा व्यक्त करते हैं। प्रौढ़ व्यक्तियों में संवेगों की अभिव्यक्ति इतने प्रत्यक्ष ढंग से नहीं होती है। बहुधा वह अपने संवेगों को दबा जाते हैं और संवेगों की अभिव्यक्ति समाज द्वारा मान्य ढंग से तथा परिस्थितियों के अनुसार करते हैं। कई बार प्रौढ़ व्यक्तियों के व्यवहार से उनमें उपस्थित संवेगों का पता लगाना कठिन होता है परन्तु बालकों के संवेगों का पता उनके व्यवहार लक्षणें से सरलता से लगाया जा सकता है (Emotions can be detected by behaviour symptoms)। बालकों की बेचैनी, दिवास्वप्न, रोना-चिल्लाना, नाखून काटना, उँगली- अँगूठा चूसना, भाषा अभिव्यक्ति में अस्थायी दोषों से बालकों की संवेगात्मकता का पता चल जाता है परन्तु प्रौढ़ व्यक्तियों में संवेगों का पता कठिनाई से लगता है।
(7) बालकों के संवेगात्मक व्यवहार में वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है। यदि अनेक बालकों के एक विशिष्ट संवेगात्मक व्यवहार की तुलना करें तो यह दृष्टिगोचर होगा कि इस विशिष्ट संवेगात्मक व्यवहार में समानता के साथ-साथ अन्तर भी पाया जाता है। भय, क्रोध, प्रेम, घृणा आदि सभी प्रकार के संवेगात्मक व्यवहारों में भिन्न-भिन्न आयु वर्ग के बालकों की संवेगात्मक अभिव्यक्तियों में अन्तर पाया जाता है।
(8) बालकों के संवेगात्मक व्यवहार के निरीक्षण से स्पष्ट होता है कि बालकों के व्यवहार में कुछ विशिष्ट प्रकार के लक्षण पाये जाते हैं; जैसे― चीखना, चिल्लाना, दाँत किटकिटाना, मचल कर जमीन में लोटपोट होना, अँगूठा चूसना, हाथ-पैर पटकना और नाखून काटना आदि।
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